मंगलवार, 4 नवंबर 2014

डीटोक्स ( Detoxification) है क्या ?

साफ पानी में पैर रखिये
३० मिनट बाद उसी पानी में शरीर के विषाक्त तत्व देखिये
ज़िंदगी को कीजिए 'रीसेट' – Press the Reset Button On Your Life

ज़िंदगी हमें हर समय किसी-न-किसी मोड़ पर उलझाती रहती है. हम अपने तयशुदा रास्ते से भटक जाते हैं और मंजिल आँखों से ओझल हो जाती है. ऐसे में हम हमेशा से यही ख्वाहिश आये है की कि काश मेरे पास ज़िंदगी को नए सिरे से शुरू करने के लिए कोई रीसेट बटन होता जैसा मोबाइल या कम्प्युटर में होता है,
यकीनन, हमारे पास बीते समय में लौटने के लिए कोई टाइम मशीन नहीं है लेकिन कुछ तो ऐसा है जिससे हम

शुक्रवार, 31 अक्तूबर 2014

पंचकर्म है शरीर की अंदरूनी सफाई

पंचकर्म - आयुर्वेदिक पूर्ण मद्यहरण एवं शुद्धिकरण
 
पंचकर्म आयुर्वेद का एक प्रमुख शुद्धिकरण एवं मद्यहरण उपचार है। पंचकर्म का अर्थ पाँच
विभिन्न चिकित्साओं का संमिश्रण है। इस प्रक्रिया का प्रयोग शरीर को बीमारियों एवं कुपोषण द्वारा छोड़े गये विषैले पदार्थों से निर्मल करने के लिये होता है। आयुर्वेद कहता है कि असंतुलित दोष अपशिष्ट पदार्थ उतपन्न करता है जिसे ’अम’ कहा जाता है। यह दुर्गंधयुक्त, चिपचिपा, हानिकारक पदार्थ होता है जिसे शरीर से यथासंभव संपूर्ण रूप से निकालना आवश्यक है। ’अम’ के निर्माण को रोकने के लिये आयुर्वेदिक साहित्य व्यक्ति को उचित आहार देने के साथ उपयुक्त जीवन शैली, आदतें तथा व्यायाम पर रखने, तथा पंचकर्म जैसे एक उचित निर्मलीकरण कार्यक्रम को लागू करने की सलाह देते हैं। 

पंचकर्म

शिरोधारा में सिर के ऊपर तेल की एक पतली धारा निरन्तर बहायी जाती है।
पंचकर्म (अर्थात पाँच कर्म) आयुर्वेद की उत्‍कृष्‍ट चिकित्‍सा विधि है। पंचकर्म को आयुर्वेद की विशिष्‍ट चिकित्‍सा पद्धति कहते है। इस विधि से शरीर में होंनें वाले रोगों और रोग के कारणों को दूर करनें के लिये और तीनों दोषों (अर्थात त्रिदोष) वात, पित्‍त, कफ के असम रूप को समरूप में पुनः स्‍थापित करनें के लिये विभिन्‍न प्रकार की प्रक्रियायें प्रयोग मे लाई जाती हैं। लेकिन इन कई प्रक्रियायों में पांच कर्म मुख्‍य हैं, इसीलिये ‘’पंचकर्म’’ कहते

    वमन  
    विरेचन
    बस्ति – अनुवासन
    बस्ति – आस्‍थापन
    नस्‍य

 उपरोक्‍त पांच को मुख्‍य अथवा प्रधान कर्म कहते हैं।

परिचय
आयुर्वेद पंचकर्म चिकित्सा पद्धति देश की प्राचीनतम चिकित्सा पद्धतियों में से एक है। देश के दक्षिणी भाग में यह बहुत लोकप्रिय है और सामान्यतौर पर लोक जीवन में स्वीकार्य है। उत्तर भारत में यह पद्धति हाल ही में

शुक्रवार, 12 सितंबर 2014

What is an Ion Foot Detox Machine

Our feet have over 4,000 pores. The pores are the outlet the Ion Detox Spa or ionic Foot Bath uses to clear the toxins from inside our cells. During a 30 minute session the water turns all kinds of colors. Some claim that the water turning colors and all the debris in the water is coming out of the body. This is a misconception and has led to many critics calling the ionic foot bath a hoax. The information in this article will help the seller, the user, and the critic to understand what really happens when a foot detox is performed.


Who invented the Ion foot detox machine?
It all started with a man by the name of Royal Rife. Although he had never seen one of these modern Electro-Therapy devices, he was the first to use frequencies in the fight against viruses, cancer and other ailments.

शुक्रवार, 5 सितंबर 2014

डिटॉक्स

डिटॉक्स शब्द का अर्थ है शरीर के आंतरिक तंत्र को भोजन में मौजूद विषैले और दूसरे हानिकारक रसायनों से मुक्त करना। इसलिए बहुत जरूरी है कि हम अपने शरीर को महीने में एक बार तीन से पांच दिन के लिए डिटॉक्सीफाई करें। डिटॉक्स या डिटॉक्सीफिकेशन डाइट काफी लोकप्रिय है, लेकिन यह वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित नहीं है। 

वैसे आयुर्वेद और चायनीज मेडिसिन सिस्टम और संसार की कई संस्कृतियों में सदियों से इनका प्रचलन है- आराम करो, सफाई करो और अपने शरीर का पोषण करो। अपने शरीर से विषैले पदार्थों को निकालने के बाद, उसे पोषक भोजन खिलाएं। डिटॉक्सीफिकेशन आपको बीमारियों से बचाता है और आपके स्वास्थ्य को बनाए रखने की क्षमता को पुनर्जीवित करता है। शरीर के हीलिंग सिस्टम को डिटॉक्सीफिकेशन बेहतर बनाता है।

डाइट प्लान सबसे पहले तो टॉक्सिन का सेवन कम करें। अल्कोहल, कॉफी, सिगरेट, रिफाइंड शूगर और सैचुरेटेड फैट, ये सब शरीर में टॉक्सिन का कार्य करते हैं और शरीर की कार्यप्रणाली में बाधा डालते हैं। 

एक अच्छी डिटॉक्स डाइट में 60 प्रतिशत तरल और 40 प्रतिशत ठोस खाद्य पदार्थ होना चाहिए।डिटॉक्सीफिकेशन का पहला नियम है अपने शरीर को हाइड्रेड रखें।
जूस: ढेर सारे फलों जैसे तरबूज, पपीता और खीरे का जूस पिएं, लेकिन अंगूर का रस न पिएं, क्योंकि यह डिटॉक्स प्रणाली में रुकावट पैदा करता है। 

सब्जियां: गहरी हरी पत्तेदार सब्जियों, फूलगोभी, पत्तागोभी और ब्रोकली को भोजन में प्रमुखता से शामिल करें। इनके अलावा प्याज भी एक अच्छा क्लीनजिंग एजेंट है। शलजम लीवर को डिटॉक्स करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। बीज में फ्लैक्स, सीसैम, सनफ्लावर और कद्दू काफी फायदेमंद हैं। फलों में पपीता और पाइन एप्पल क्लीनजिंग के लिए बहुत अच्छे हैं। 

कैसे और कब आदर्श रूप से किसी को तीन महीने में एक बार एक सप्ताह के लिए डिटॉक्स डाइट पर रहना चाहिए। अगर आप मोटे हैं तो हर वीकएंड पर डिटॉक्स कर सकते हैं। अगर आपके शरीर में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा अधिक है, डायबिटीज या ब्लड प्रेशर है तो हर दो महीने में डिटॉक्स करें। अगर आप तनावभरी जिंदगी जी रहे हैं तो 15 दिन में एक बार डिटॉक्स जरूर करें। जब आप डिटॉक्स करें तो कैफीन, ऐसे खाद्य पदार्थ जिनमें प्रिजर्वेटिव हो, चीनी और वसा युक्त जंक फूड का सेवन न करें। स्मोकिंग और शराब का सेवन भी न करें। लंबे समय तक डिटॉक्स डाइट पर न रहें, क्योंकि इससे शरीर में विटामिन और मिनरल की कमी हो जाती है। इससे डीहाइड्रेशन भी हो सकता है। 

कैसे जानें कि शरीर में विषैले तत्व जमा हो गए हैं आधुनिक जीवनशैली, शहरी परिवेश की दौड़भाग और बढ़ते पर्यावरण प्रदूषण ने लोगों के स्वास्थ्य को बुरी तरह प्रभावित किया है और हमारे शरीर में टॉक्सिन की मौजूदगी को बढ़ा दिया है। कुछ लक्षण हैं जिन पर नजर रख कर आप पहचान सकते हैं कि आपको डिटॉक्सीफिकेशन की जरूरत है। 

थकान और कमजोरी महसूस होना। हार्मोन संबंधी समस्या (मूड स्विंग)। ध्यान केंद्रन की समस्या। सिरदर्द और बदन दर्द। त्वचा संबंधी समस्याएं। पाचन तंत्र संबंधी समस्याएं। भार कम करने में समस्या होना। कैसे कार्य करता है डिटॉक्सीफिकेशन उपवास के द्वारा शरीर के अंगों को आराम पहुंचाता है। शरीर से टॉक्सिन बाहर निकालने के लिए लीवर को प्रोत्साहित करता है। किडनी, आंत और त्वचा से विषैले पदार्थो को बाहर निकालने की प्रक्रिया को तेज करता है। रक्त का परिसंचरण सुधारता है। शरीर को स्वस्थ पोषक तत्वों से दोबारा भर देता है। 

डिटॉक्सीफिकेशन 10 टिप्स 
ढेर सारा फाइबर खाएं, जिसमें ब्राउन राइस, ताजे फल और सब्जियां, चुकंदर, मूली, पत्तागोभी, ब्रोकली शामिल हों। ये डिटॉक्सीफिकेशन के बहुत अच्छे स्त्रोत हैं। अपने लीवर को हर्बल टी या ग्रीन टी के द्वारा भी साफ कर सकते हैं। विटामिन सी का अधिक मात्रा में सेवन करें, जो लीवर से टॉक्सिन को बाहर निकालने में मददगार होते हैं। दिन में कम से कम चार लीटर पानी पिएं। गहरी सांस लें, ताकि अधिक मात्रा में ऑक्सीजन शरीर में प्रवाहित हो। सोना बाथ लें, ताकि पसीने के साथ व्यर्थ पदार्थ शरीर से बाहर निकल सकें। बेहतर नींद, सकारात्मक दृष्टिकोण, मस्तिष्क की स्पष्टता बनाए रखें। असंतुलित भोजन, नकारात्मक मानसिक दृष्टिकोण और शारीरिक निष्क्रियता से शरीर में टॉक्सिन इकट्ठा होने लगते हैं। इन सबसे बचने का प्रयास करें। शाकाहारी भोजन लें। यह शरीर पर अधिक दबाव नहीं डालता। जो लोग नियमित रूप से कैफीन या सोडा ड्रिंक लेते हैं, उनके शरीर में भी टॉक्सिन इकट्ठे हो जाते हैं। इनका सेवन बंद कर दें या बिल्कुल कम कर दें। कैफीन का सेवन बंद करने से होने वाले सिरदर्द से निपटने के लिए अधिक मात्रा में विटामिन बी 5 का सेवन कर सकते हैं। गर्म पानी में आधा नींबू निचोड़ कर पिएं। नींबू-पानी इस काम में बेहद फायदेमंद है। लेकिन यह ध्यान रखें कि इसमें कभी नमक या चीनी न मिलाएं। त्रिफला भी एक अच्छा विकल्प है। हल्के गर्म पानी में आधा चम्मच त्रिफला मिलाएं। आधा घुलने तक चम्मच से हिलाते रहें। छलनी से छान कर इसे पी लें। एलोवेरा जूस शरीर से जहरीली चीजों को निकालने के लिए एक बेहतरीन साधन है। दो चम्मच एलोवेरा जूस को एक कप पानी में मिलाएं और दिन में दो बार पिएं। डिटॉक्स डाइट के लाभ इम्यूनिटी को सुधारता है और ऊर्जा के स्तर को बढ़ाता है। पाचन मार्ग की सफाई करता है। रक्त को शुद्घ करता है। त्वचा को चमकदार बनाए रखता है। उत्तकों को नष्ट करने वाले फ्री रैडिकल्स को शरीर से बाहर निकालता है। कैंसर और दूसरी बीमारियों के खतरे को कम करता है। रक्त को शुद्घ करता है। लीवर और किडनी की कार्यप्रणाली को सुधारता है। बुरी आदतों जैसे प्रोसेस्ड फूड, शूगर, कैफीन और शराब के सेवन पर नियंत्रण हो जाता है। इन बातों को नजरअंदाज न करें गर्भवती महिलाएं, स्तनपान कराने वाली महिलाएं और जिन्हें थायराइड, लीवर और किडनी की समस्या हो, डिटॉक्स डाइट पर न जाएं। जिन लोगों ने अंग प्रत्यारोपण करवाया हो, वह डिटॉक्स डाइट न लें। बुजुर्गों और बच्चों को भी इससे दूर रहने की सलाह दी जाती है। जो लोग मल्टीविटामिन का सेवन कर रहे हैं, उन्हें डिटॉक्स के दौरान इनका सेवन बंद कर देना चाहिए। डायबिटीज, हाइपरटेंशन, थायराइड और हृदय की समस्याओं के रोगी डिटॉक्स के साथ इन दवाओं का सेवन जारी रख सकते हैं। बरतें सावधानी किसी को भी डिटॉक्स डाइट किसी विशेषज्ञ न्युट्रीशिनिस्ट के मार्गदर्शन में ही करना चाहिए और कुछ बातों का पालन करना चाहिए। जब आप डिटॉक्स डाइट पर जाएं, आपको खुद को भूखा नहीं रखना चाहिए। मौसमी, ताजे फल और सब्जियों, जूस, नींबू पानी, नारियल पानी, दही, छाछ, अंकुरित अनाज, साबुत अनाज का सेवन करें। ढेर सारा पानी पिएं।

डिटॉक्स करते समय : 
१. मशीन प्रयोग करते समय मोबाइल ऑफ रखे..तथा कोई भी विधुतीय उपकरण साथ न रखे.. 
२. मशीन प्रयोग करते समय ३० मिनट तक तब में पैर न हिलाये.. 
३. भर पेट खाना खाने के १ घंटे पश्चात ही मशीन प्रयोग करे... 

नोट : ५० साल के ऊपर के ब्यक्ति के लिए... ३ या ४ दिन के अंतराल पर डिटॉक्स कराये... पानी अधिक से अधिक पिए.. ग्रीन टी के मिश्रण के साथ... अगर घुटने में दर्द महसूस हो तो बी सी यम मशीन पर पैर का और कमर के प्रेसर का मसाज करे.. डिटॉक्स करते समय कुछ लक्छण : 

१. शरीर में कही दर्द है.. तो दर्द बड़ सकता है.. या जलन हो सकता है... 
२. बुखार आना, सर दुखना, या सर्दी लगने जैसी कोई तकलीफ 
३. किसी समय ज्यादा पैखाना, या ज्यादा पिसाब लग सकता है.. 
४. किसी को थकान, अधिक नींद , या अधिक प्यास भी लगता है.. बस अधिक से अधिक ग्रीन टी और नीबू पानी का सेवन करे...

"बिना खर्च किये ही रोगों से बचकर तन्दुरुस्त बनो"

"बिना खर्च किये ही रोगों से बचकर तन्दुरुस्त बनो"

नई एवं पुरानी प्राणघातक बीमारियाँ दूर करने के लिए यह एक अत्यंत सरल एवं बहुत बढ़िया प्रयोग है। इसको हम यहाँ पानी प्रयोग कहेंगे।

मधुप्रमेह (डायबिटीज), सिरदर्द, ब्लडप्रेशर, एनिमिया (रक्त की कमी), जोड़ों का दर्द, लकवा (पेरेलिसिस), मोटापन, हृदय की धड़कनें एवं बेहोशी, कफ, खाँसी, दमा (ब्रोन्काईटीस), टी.बी., मेनिनजाईटीस), लीवर के रोग, पेशाब की बीमारियाँ, एसीडीटी (अम्लपित्त), गेस्ट्राईटीस (गैस विषयक तकलीफें), पेचिश, कब्ज, हरस, आँखों की हर किस्म की तकलीफें, स्त्रियों का अनियमित मासिकस्राव, प्रदर (ल्यकोरिया), गर्भाशय का कैंसर, नाक, कान एवं गले से सम्बन्धित रोग आदि आदि।


पानी पीने की रीतिः प्रभात काल में जल्दी उठकर, बिना मुँह धोये हुए बिना ब्रश किये हुए करीब सवा लीटर (चार बड़े गिलास) पानी एक साथ पी लें। ताजा पानी आराम से बैठ कर धीरे धीरे पीए और पानी ठण्डा न हो। तदनन्तर 45 मिनट तक कुछ भी खायें-पियें नहीं। पानी पीने के बाद मुँह धो सकते हैं, ब्रश कर सकते हैं। यह प्रयोग चालू करने के बाद सुबह में अल्पाहार के बाद, दोपहर को एवं रात्रि को भोजन के बाद दो घण्टे बीत जाने पर पानी पियें। रात्रि के समय सोने से पहले कुछ भी खाये नहीं।

बीमार एवं बहुत ही नाजुक प्रकृति के लोग एक साथ चार गिलास पानी नहीं पी सकें तो वे पहले एक या दो गिलास से प्रारंभ करें और बाद में धीरे-धीरे एक-एक गिलास बढ़ाकर चार गिलास पर आ जायें। फिर नियमित रूप से चार गिलास पीते रहें।

बीमार हो या तन्दुरुस्त, यह प्रयोग सबके लिए इस्तेमाल करने योग्य है। बीमार के लिए यह प्रयोग इसलिए उपयोगी है कि इससे उसे आरोग्यता मिलेगी और तन्दुरुस्त आदमी यह प्रयोग करेगा तो वह कभी बीमार नहीं पड़ेगा।

जो लोग वायु रोग एवं जोड़ों के दर्द से पीड़ित हों उन्हें यह प्रयोग एक सप्ताह तक दिन में तीन बार करना चाहिए। एक सप्ताह के बाद दिन में एक बार करना पर्याप्त है। यह पानी प्रयोग बिल्कुल सरल एवं सादा है। इसमें एक भी पैसे का खर्च नहीं है। हमारे देश के गरीब लोगों के लिए बिना खर्च एवं बिना दवाई के आरोग्यता प्राप्त करने की यह एक चमत्कारिक रीति है।

तमाम भाइयों एवं बहनों को विनती है कि इस पानी प्रयोग का हो सके उतना अधिक प्रचार करें। रोगियों के रोग दूर करने के प्रयासों में सहयोगी बनें।
चार गिलास पानी पीने से स्वास्थ्य पर कोई भी कुप्रभाव नहीं पड़ता। हाँ, प्रारंभ के तीन-चार दिन तक पानी पीने के बाद दो-तीन बार पेशाब होगा लेकिन तीन-चार दिन के बाद पेशाब नियमित हो जायेगा।

..... तो भाइयों एवं बहनों ! तन्दुरुस्त होने के लिए एवं अपनी तन्दुरुस्ती बनाये रखने के लिए आज से ही यह पानी प्रयोग शुरु करके बीमारियों को भगायें। आज से हम सब तन्दुरुस्त बनकर जीवन में दया, मानवता एवं ईमानदारी लाकर पृथ्वी पर स्वर्ग को उतारेंगे....

प्रातःकाल में दातुन करने से पहले पानी पीने से कई रोग मिट जाते हैं ऐसा हम लोगों ने अपने बुजुर्गों से कहानी के रूप में सुना है किन्तु अब हमारे देश के बुजुर्गों की बातों का प्रचार-प्रसार विदेशी लोगों के द्वारा किया जाता है तब हमें पता चलता है कि कैसा महान् है भारत का शरीरविज्ञान और अध्यात्म ज्ञान !


तिथि अनुसार आहार-विहार

तिथि अनुसार आहार-विहार ---

प्रतिपदा को कूष्मांड (कुम्हड़ा, पेठा) न खायें, क्योंकि यह धन का नाश करने वाला है।
द्विताया को बृहती (छोटा बैंगन या कटेहरी) खाना निषिद्ध है|

तृतिया को परवल खाने से शत्रुओं की वृद्धि होती है।

चतुर्थी को मूली खाने से धन का नाश होता है।

पंचमी को बेल खाने से कलंक लगता है।

षष्ठी को नीम की पत्ती, फल या दातुन मुँह में डालने से नीच योनियों की प्राप्ति होती है।

सप्तमी को ताड़ का फल खाने से रोग होते हैं तथा शरीर का नाश होता है।

अष्टमी को नारियल का फल खाने से बुद्धि का नाश होता है।

नवमी को लौकी गोमांस के समान त्याज्य है।

एकादशी को शिम्बी(सेम) खाने से, द्वादशी को पूतिका(पोई) खाने से अथवा त्रयोदशी को बैंगन खाने से पुत्र का नाश होता है।

अमावस्या, पूर्णिमा, संक्रान्ति, चतुर्दशी और अष्टमी तिथि, रविवार, श्राद्ध और व्रत के दिन स्त्री-सहवास तथा तिल का तेल, लाल रंग का साग व काँसे के पात्र में भोजन करना निषिद्ध है।

आयुर्वेदिक चूर्ण

हम इससे पहले आयुर्वेदिक दवाओं में गोलियों, वटियों भस्म व पिष्टी की जानकारी आपको दे चुके हैं। आयुर्वेद के कुछ चूर्ण, जो दैनिक जीवन में बहुत उपयोगी हैं, की जानकारी दी जा रही है-

अश्वगन्धादि चूर्ण : धातु पौष्टिक, नेत्रों की कमजोरी, प्रमेह, शक्तिवर्द्धक, वीर्य वर्द्धक, पौष्टिक तथा बाजीकर, शरीर की झुर्रियों को दूर करता है। मात्रा 5 से 10 ग्राम प्रातः व सायं दूध के साथ।

अविपित्तकर चूर्ण : अम्लपित्त की सर्वोत्तम दवा। छाती और गले की जलन, खट्टी डकारें, कब्जियत आदि पित्त रोगों के सभी उपद्रव इसमें शांत होते हैं। मात्रा 3 से 6 ग्राम भोजन के साथ।

अष्टांग लवण चूर्ण : स्वादिष्ट तथा रुचिवर्द्धक। मंदाग्नि, अरुचि, भूख न लगना आदि पर विशेष लाभकारी। मात्रा 3 से 5 ग्राम भोजन के पश्चात या पूर्व। थोड़ा-थोड़ा खाना चाहिए।

आमलकी रसायन चूर्ण : पौष्टिक, पित्त नाशक व रसायन है। नियमित सेवन से शरीर व इन्द्रियां दृढ़ होती हैं। मात्रा 3 ग्राम प्रातः व सायं दूध के साथ।

आमलक्यादि चूर्ण : सभी ज्वरों में उपयोगी, दस्तावर, अग्निवर्द्धक, रुचिकर एवं पाचक। मात्रा 1 से 3 गोली सुबह व शाम पानी से।

एलादि चूर्ण : उल्टी होना, हाथ, पांव और आंखों में जलन होना, अरुचि व मंदाग्नि में लाभदायक तथा प्यास नाशक है। मात्रा 1 से 3 ग्राम शहद से।

गंगाधर (वृहत) चूर्ण : अतिसार, पतले दस्त, संग्रहणी, पेचिश के दस्त आदि में। मात्रा 1 से 3 ग्राम चावल का पानी या शहद से दिन में तीन बार।

जातिफलादि चूर्ण : अतिसार, संग्रहणी, पेट में मरोड़, अरुचि, अपचन, मंदाग्नि, वात-कफ तथा सर्दी (जुकाम) को नष्ट करता है। मात्रा 1.5 से 3 ग्राम शहद से।

दाडिमाष्टक चूर्ण : स्वादिष्ट एवं रुचिवर्द्धक। अजीर्ण, अग्निमांद्य, अरुचि गुल्म, संग्रहणी, व गले के रोगों में। मात्रा 3 से 5 ग्राम भोजन के बाद।

चातुर्जात चूर्ण : अग्निवर्द्धक, दीपक, पाचक एवं विषनाशक। मात्रा 1/2 से 1 ग्राम दिन में तीन बार शहद से।

चातुर्भद्र चूर्ण : बालकों के सामान्य रोग, ज्वर, अपचन, उल्टी, अग्निमांद्य आदि पर गुणकारी। मात्रा 1 से 4 रत्ती दिन में तीन बार शहद से।

चोपचिन्यादि चूर्ण : उपदंश, प्रमेह, वातव्याधि, व्रण आदि पर। मात्रा 1 से 3 ग्राम प्रातः व सायं जल अथवा शहद से।

तालीसादि चूर्ण : जीर्ण, ज्वर, श्वास, खांसी, वमन, पांडू, तिल्ली, अरुचि, आफरा, अतिसार, संग्रहणी आदि विकारों में लाभकारी। मात्रा 3 से 5 ग्राम शहद के साथ सुबह-शाम।

दशन संस्कार चूर्ण : दांत और मुंह के रोगों को नष्ट करता है। मंजन करना चाहिए।

नारायण चूर्ण : उदर रोग, अफरा, गुल्म, सूजन, कब्जियत, मंदाग्नि, बवासीर आदि रोगों में तथा पेट साफ करने के लिए उपयोगी। मात्रा 2 से 4 ग्राम गर्म जल से।

पुष्यानुग चूर्ण : स्त्रियों के प्रदर रोग की उत्तम दवा। सभी प्रकार के प्रदर, योनी रोग, रक्तातिसार, रजोदोष, बवासीर आदि में लाभकारी। मात्रा 2 से 3 ग्राम सुबह-शाम शहद अथवा चावल के पानी में।

पुष्पावरोधग्न चूर्ण : स्त्रियों को मासिक धर्म न होना या कष्ट होना तथा रुके हुए मासिक धर्म को खोलता है। मात्रा 6 से 12 ग्राम दिन में तीन समय गर्म जल के साथ।

पंचकोल चूर्ण : अरुचि, अफरा, शूल, गुल्म रोग आदि में। अग्निवर्द्धक व दीपन पाचन। मात्रा 1 से 3 ग्राम।

पंचसम चूर्ण : कब्जियत को दूर कर पेट को साफ करता है तथा पाचन शक्ति और भूख बढ़ाता है। आम शूल व उदर शूल नाशक है। हल्का दस्तावर है। आम वृद्धि, अतिसार, अजीर्ण, अफरा, आदि नाशक है। मात्रा 5 से 10 ग्राम सोते समय पानी से।

यवानिखांडव चूर्ण : रोचक, पाचक व स्वादिष्ट। अरुचि, मंदाग्नि, वमन, अतिसार, संग्रहणी आदि उदर रोगों पर गुणकारी। मात्रा 3 से 6 ग्राम।

लवणभास्कर चूर्ण : यह स्वादिष्ट व पाचक है तथा आमाशय शोधक है। अजीर्ण, अरुचि, पेट के रोग, मंदाग्नि, खट्टी डकार आना, भूख कम लगना। आदि अनेक रोगों में लाभकारी। कब्जियत मिटाता है और पतले दस्तों को बंद करता है। बवासीर, सूजन, शूल, श्वास, आमवात आदि में उपयोगी। मात्रा 3 से 6 ग्राम मठा (छाछ) या पानी से भोजन के पूर्व या पश्चात लें।

लवांगादि चूर्ण : वात, पित्त व कफ नाशक, कंठ रोग, वमन, अग्निमांद्य, अरुचि में लाभदायक। स्त्रियों को गर्भावस्था में होने वाले विकार, जैसे जी मिचलाना, उल्टी, अरुचि आदि में फायदा करता है। हृदय रोग, खांसी, हिचकी, पीनस, अतिसार, श्वास, प्रमेह, संग्रहणी, आदि में लाभदायक। मात्रा 3 ग्राम सुबह-शाम शहद से।

व्योषादि चूर्ण : श्वास, खांसी, जुकाम, नजला, पीनस में लाभदायक तथा आवाज साफ करता है। मात्रा 3 से 5 ग्राम सायंकाल गुनगुने पानी से।

शतावरी चूर्ण : धातु क्षीणता, स्वप्न दोष व वीर्यविकार में, रस रक्त आदि सात धातुओं की वृद्धि होती है। शक्ति वर्द्धक, पौष्टिक, बाजीकर तथा वीर्य वर्द्धक है। मात्रा 5 ग्राम प्रातः व सायं दूध के साथ।

स्वादिष्ट विरेचन चूर्ण (सुख विरेचन चूर्ण) : हल्का दस्तावर है। बिना कतलीफ के पेट साफ करता है। खून साफ करता है तथा नियमित व्यवहार से बवासीर में लाभकारी। मात्रा 3 से 6 ग्राम रात्रि सोते समय गर्म जल अथवा दूध से।

सारस्वत चूर्ण : दिमाग के दोषों को दूर करता है। बुद्धि व स्मृति बढ़ाता है। अनिद्रा या कम निद्रा में लाभदायक। विद्यार्थियों एवं दिमागी काम करने वालों के लिए उत्तम। मात्रा 1 से 3 ग्राम प्रातः -सायं मधु या दूध से।

सितोपलादि चूर्ण : पुराना बुखार, भूख न लगना, श्वास, खांसी, शारीरिक क्षीणता, अरुचि जीभ की शून्यता, हाथ-पैर की जलन, नाक व मुंह से खून आना, क्षय आदि रोगों की प्रसिद्ध दवा। मात्रा 1 से 3 गोली सुबह-शाम शहाद से।

सुदर्शन (महा) चूर्ण : सब तरह का बुखार, इकतरा, दुजारी, तिजारी, मलेरिया, जीर्ण ज्वर, यकृत व प्लीहा के दोष से उत्पन्न होने वाले जीर्ण ज्वर, धातुगत ज्वर आदि में विशेष लाभकारी। कलेजे की जलन, प्यास, खांसी तथा पीठ, कमर, जांघ व पसवाडे के दर्द को दूर करता है। मात्रा 3 से 5 ग्राम सुबह-शाम पानी के साथ।

सुलेमानी नमक चूर्ण : भूख बढ़ाता है और खाना हजम होता है। पेट का दर्द, जी मिचलाना, खट्टी डकार का आना, दस्त साफ न आना आदि अनेक प्रकार के रोग नष्ट करता है। पेट की वायु शुद्ध करता है। मात्रा 3 से 5 ग्राम घी में मिलाकर भोजन के पहले अथवा सुबह-शाम गर्म जल से भोजन के बाद।

सैंधवादि चूर्ण : अग्निवर्द्धक, दीपन व पाचन। मात्रा 2 से 3 ग्राम प्रातः व सायंकाल पानी अथवा छाछ से।

हिंग्वाष्टक चूर्ण : पेट की वायु को साफ करता है तथा अग्निवर्द्धक व पाचक है। अजीर्ण, मरोड़, ऐंठन, पेट में गुड़गुड़ाहट, पेट का फूलना, पेट का दर्द, भूख न लगना, वायु रुकना, दस्त साफ न होना, अपच के दस्त आदि में पेट के रोग नष्ट होते हैं तथा पाचन शक्ति ठीक काम करती है। मात्रा 3 से 5 ग्राम घी में मिलाकर भोजन के पहले अथवा सुबह-शाम गर्म जल से भोजन के बाद।

त्रिकटु चूर्ण : खांसी, कफ, वायु, शूल नाशक, व अग्निदीपक। मात्रा 1/2 से 1 ग्राम प्रातः-सायंकाल शहद से।

त्रिफला चूर्ण : कब्ज, पांडू, कामला, सूजन, रक्त विकार, नेत्रविकार आदि रोगों को दूर करता है तथा रसायन है। पुरानी कब्जियत दूर करता है। इसके पानी से आंखें धोने से नेत्र ज्योति बढ़ती है। मात्रा 1 से 3 ग्राम घी व शहद से तथा कब्जियत के लिए 5 से 10 ग्राम रात्रि को जल के साथ।

श्रृंग्यादि चूर्ण : बालकों के श्वास, खांसी, अतिसार, ज्वर में। मात्रा 2 से 4 रत्ती प्रातः-सायंकाल शहद से।

अजमोदादि चूर्ण : जोड़ों का दुःखना, सूजन, अतिसार, आमवात, कमर, पीठ का दर्द व वात व्याधि नाशक व अग्निदीपक। मात्रा 3 से 5 ग्राम प्रातः-सायं गर्म जल से अथवा रास्नादि काढ़े से।

अग्निमुख चूर्ण (निर्लवण) : उदावर्त, अजीर्ण, उदर रोग, शूल, गुल्म व श्वास में लाभप्रद। अग्निदीपक तथा पाचक। मात्रा 3 ग्राम प्रातः-सायं उष्ण जल से।

माजून मुलैयन : हाजमा करके दस्त साफ लाने के लिए प्रसिद्ध माजून है। बवासीर के मरीजों के लिए श्रेष्ठ दस्तावर दवा। मात्रा रात को सोते समय 10 ग्राम माजून दूध के साथ।